Thursday, September 15, 2011

जय हो

नाटक - जय हो
(लेखक- महेंद्र आर्य)


कथानक
जय हो - एक ऐसे देश की कहानी है, जो समुद्र के बीच एक टापू पर बसा हुआ है .दुनिया की प्रगति से बेखबर ये छोटा सा देश अपने ही अंदाज में चलता है. भाषा, वेश भूषा आदि देख कर ऐसा लगता है कि किसी युग में भारत से ही आये हुए लोगों ने ये देश बसाया होगा . इस देश के राजा हैं- महाराज चौपट सिंह तृतीय . आप ही फैसला कीजिये कि इस देश का भविष्य क्या है ?


पात्र-परिचय

१. महाराज चोपट सिंह
२.महारानी चोपाटी देवी
३.युवराज नटखट सिंह / आम आदमी - सुनार
४. गुप्तचर बुल शीट सिंह / आम आदमी - किसान(मिर्ची)
५.महामंत्री लम्पट सिंह
६. वित्त मंत्री कड़का सिंह / आम आदमी - किसान (तरबूज)
७. गृह मंत्री - हलकट सिंह / रसोइया
८. खाद्य मंत्री कुक्कट सिंह / आम आदमी - कवि
९. शिक्षा मंत्री पोपट सिंह /आम आदमी - किसान(निम्बू)
१०. द्वारपाल
११. सेवक
१२. राजवैध्या मरघट सिंह / कोतवाल
१३. बहरी बुआजी
१४. फरियादी बुढिया





नाटक - जय हो

मंच पर पूरा अँधेरा होता है. पर्दा अभी बंद है .

नेपथ्य से आवाज आती है -
" यह है अंधेर नगरी. यह कहानी है एक ऐसे देश की जो समुद्र के बीच , दुनिया से बेखबर एक छोटा सा टापू है .यहाँ के राजा हैं - चौपट सिंह तृतीय. पूरा देश एक अलग ही किस्म की जिंदगी जीता है क्योंकि इन्हें बाहर की दुनिया से न तो अधिक दिलचस्पी है और न ही इनके पास विशेष साधन. आईये देखे - जय हो. "

Scene-1

पर्दा अभी भी बंद है. परदे के एक तरफ से एक राजकीय वेश भूषा में एक व्यक्ति मंच पर दिखाई देता है. उसने एक काले रंग का लबादा ओढ़ रखा है जिसमे सर को ढकने के लिए भी एक तोप है. लबादे के पीछे की तरफ हिंदी में लिखा है - "गुप्तचर" . संगीत बजता है ( धुन- जेम्स बोंड थीम ) . वह धीरे धीरे परदे के पास से होकर गुजर रहा है. स्पोट लाइट उस पर केन्द्रित है. तभी नेपथ्य से आवाज आती है -

"ये जो सज्जन परदे के सामने से गुजर रहे न , वो अंधेर नगरी के सरकारी गुप्तचर यानि जासूस श्रीमान बुल शीट सिंह हैं. इनका काम है रात के अँधेरे में महल के अन्दर और बाहर छुप छुप कर खुफिया जानकारी इकठा करना . आइये देखें आज क्या चल रहा है."

गुप्तचर कान लगा कर सुनता है . उसे किसी के फुसफुसा कर बोलने की आवाज आती है -
" बहुत हो चुकी राजा की मनमानी. अब उसकी खैर नहीं . अब तो काम तमाम ही समझो. हा हा हा हा ......"

तभी उसे किसी के चलने की आवाज आती है. गुप्तचर वहां से आगे बढ़ जाता है . मन ही मन बोलता है -
" यह तो महाराज को मार डालने की कोई साजिश हो रही है . मुझे महाराज को चल कर खबर देनी चाहिए .”
(बुल शीट सिंह तेज क़दमों से चल कर मंच से निकल जाता है .)



Scene-2

(धीरे धीरे रौशनी होती है और पर्दा खुलता है . मंच पर है महाराजा के दरबार का दृश्य .)

मंच सज्जा : सामने बीच में महाराज का सिंघासन . पास में दोनों तरफ तीन तीन छोटे सिंहासन .बीच में एक लाल रंग का गलीचा बिछा हुआ . महाराज के आसन के एक और रखा है एक बड़ा सा हुक्का.दूसरी तरफ एक फूलों का गुलदस्ता . दोनों तरफ दरवाजों पर शाही ढंग के परदे लगे हुए .ऊपर से लटकता हुआ एक फानूस .इसके अलावा यथा संभव सजावट का सामान- दरबार के अनुरूप.

(मंच पर दरवाजे पर खड़े हैं दो पहरेदार .दोनों के हाथ में नुकीले भाले.)

नेपथ्य से आवाज आती है -
" दरबार में पधार रहें है - महा मंत्री श्रीमान लम्पट सिंह ."
इसके साथ ही महा मंत्री लम्पट सिंह आते हैं और महाराजा के दाहिनी कुर्सी पर बैठ जाते हैं .


" दरबार में पधार रहें है वित्त मंत्री श्रीमान कड़का सिंह "
इसके साथ ही वित्त मंत्री श्रीमान कड़का सिंह आते हैं और महाराजा के बायीं कुर्सी पर बैठ जाते हैं .

" दरबार में पधार रहें है गृह मंत्री श्रीमान हलकट सिंह "
इसके साथ ही गृह मंत्री श्रीमान हलकट सिंह आते हैं और महामंत्री के दाहिनी कुर्सी पर बैठ जाते हैं .

" दरबार में पधार रहें है खाद्य मंत्री श्रीमान कुक्कट सिंह "
इसके साथ ही खाद्य मंत्री श्रीमान कुक्कट सिंह आते हैं और वित्त मंत्री के बायीं कुर्सी पर बैठ जाते हैं .

"दरबार में पधार रहें है शिक्षा मंत्री श्रीमान पोपट सिंह "
इसके साथ ही शिक्षा मंत्री श्रीमान पोपट सिंह आते हैं और गृह मंत्री के दाहिनी कुर्सी पर बैठ जाते हैं .


महा मंत्री लम्पट सिंह खड़े हो जाते हैं और सभी मंत्रियों से कहते हैं .

महा मंत्री- महाराज का दरबार में आने का वक़्त हो रहा है . याद है न आप सबको पिछली बार महाराज ने क्या आदेश दिए थे .
शिक्षा मंत्री- बिलकुल याद है महा मंत्री . महाराज का आदेश हुआ था की दरबार की कार्यवाही से पहले नेशनल अन्थेम बजेगा .
महा मंत्री - बस, सिर्फ इतना याद रहा आपको. अरे असली बात तो आप भूल गए . महाराज ने कहा था की नेशनल अन्थेम के समय कोई भी मुह लटका कर नहीं खड़ा रहेगा .उन्हें ऐसा नहीं लगना चाहिए की कोई मर गया हो और हम सब उसके लिए दो मिनट का मौन कर रहें हों.
वित्त मंत्री - (सोचते हुए )- तो फिर हमें क्या करना होगा , महामंत्री.
महा मंत्री- मेरी इस विषय में महाराज से चर्चा हुई थी . मैंने यही प्रश्न पूछ लिया था , कि हमें नेशनल अन्थेम के समय क्या करना चाहिए . महाराज ने कहा जो मैं करूं वही तुम करो.
वित्त मंत्री- क्या मतलब ?
महा मंत्री - अरे भाई मतलब साफ़ है . महाराज का जैसा मूड होगा वैसे ही वो करेंगे .हमें उनके मूड में मूड मिला कर चलना है . हाँ एक बात और . याद रखना की हमारा राष्ट्रीय अभिवादन है ठेंगा . जब भी अभिवादन करो, ठेंगा दिखा कर करो.

नेपथ्य से -
" दरबार में अंधेर नगरी के महाराज महामहिम चौपट सिंह तृतीय पधार रहें है ."

(सारे मंत्रीगण खड़े हो जाते हैं .द्वारपाल जूते ठोंक कर जोर से बोलते हैं - " महाराज की जय हो " और फिर महाराज को ठेंगा दिखता है .)

(महाराज उनकी तरफ देख कर कहते हैं - "जय हो भाई जय हो " महाराज भी उसे ठेंगा दिखाते हैं.
सारे मंत्री भी जोर से बोलते हैं - " महाराज की जय हो " और ठेंगा दिखाते हैं. महाराज भी सबको ठेंगा दिखाते है .)

महाराज अपने आसन के सामने जा कर खड़े हो जाते हैं . दोनों तरफ अपने मंत्रिमंडल की तरफ देखते हैं , एक मुस्कान बिखेरते हैं .थोडा बैठने की मुद्रा में आते हैं. उनके देखादेखी मंत्रीगण भी बैठने लगते हैं . महाराज फिर झटके से सीधे खड़े हो जाते हैं . सारे मंत्री भी झटके से सीधे खड़े हो जाते हैं . महाराज ताली बजा कर हँसते हैं .फिर बैठने लगते हैं . सारे मंत्री भी बैठने लगते हैं . महाराज फिर एक बार झटके से सीधे खड़े हो जाते हैं . सारे मंत्री भी वैसा ही करते हैं .इस बार महाराज थोडा गंभीर हो जाते हैं .

महाराज- कमाल है . पिछली बार मैंने आप लोगों को कितना समझाया था , की दरबार की कार्यवाही से पहले नेशनल अन्थेम बजेगा .
महामंत्री - हाँ महाराज .
महाराज- तो बजाओ फिर .
महामंत्री- महाराज , बाजा तो युवराज नटखट सिंह अपने बेडरूम में ले गए थे .

तभी द्वारपाल आता है - " महाराज की जय हो , बाजा आ चूका है ."
महाराज- तो बजाओ फिर
बाजा बजता है -
गीत - आजा आजा नीले शामियाने के तले आजा .........

महाराज मस्ती में नाचने लगते हैं. सारे मंत्रीगण भी महाराज के साथ नाचने लगते हैं .राष्ट्र गीत ख़तम होता है . महाराज अपनी जेब से रूमाल निकल कर चेहरे से पसीना पोंछते हुए बैठ जाते हैं. सभी मंत्रीगण भी बैठ जाते हैं .

महाराज- क्या मस्त चीज है ये नेशनल अन्थेम भी . माईंड फ्रेश हो जाता है .
महा मंत्री- हाँ महाराज . ये नया नेशनल अन्थेम बहुत अच्छा है . पुराना वाला कितना बोरिंग था .
सारे मंत्री गन - हाँ महाराज बहुत बोरिंग था .

महाराज- युवराज नटखट सिंह कहाँ हैं ? उन्हें इस वक़्त दरबार में होना चाहिए था .
शिक्षा मंत्री - महाराज. आज कल वो न जाने किस चक्कर में घूमते रहते हैं . कोई विदेशी गोरी मेम आई हुई है , उसके साथ वो उत्तर दिशा वाले पहाड़ों पर घूम रहें हैं . ना जाने विदेशी भाषा में क्या बात करते रहते हैं दोनों .
महाराज- ये सब आप की ही गलत सलाह का परिणाम है . आपने उसे भिजवा दिया विलायत . हमारे यहाँ कोई समुद्र पार नहीं करता .आपने उसे भेज दिया उस विदेशी जहाज से. कितना बदल गया हमारा नट खट. खैर उसे जहाँ भी मिले हमारे बेडरूम में भिजवा दीजियेगा .जरूरी गुफ्तगू करनी है .
शिक्षा मंत्री- क्या करनी हैं महाराज .
महाराज- गुफ्तगू .
शिक्षा मंत्री - गुफ्ता
महाराज- बोलो गुफ्त
शिक्षा मंत्री- गुफ्त
महाराज - गू
शिक्षा मंत्री- क्या ?
महाराज- कुछ नहीं, जाने दो .



महाराज- महामंत्री लम्पट सिंह . दरबार की कार्यवाही शुरू की जाये .
महामंत्री- जी महाराज .
महामंत्री - आज का पहला अजेंडा है , दरबार के कर्मचारियों की वेतन वृद्धि !
महाराज- हम्म !
(महाराज को धीरे धीरे नींद के लटके आने लगते हैं )
महामंत्री - महाराज, हमारे दरबार के नियमों के अनुसार हर वर्ष के प्रारंभ में सभी कर्मचारियों का वेतन बढाया जाता है . चूँकि नया वर्ष शुरू हो चूका है इसलिए ये मुद्दा महाराज के गौर फरमाने के लिए लाया गया है .
महाराज - खरर्रर्रर्रर (खर्राटों की आवाज )
सभी मंत्रीगण महाराज की तरफ देखते हैं .
महामन्त्री ( लगभग चीखते हुए )- महाराज पिछले वर्ष वेतन में ३० प्रतिशत की वृद्धि हुई थी . इस वर्ष ५० प्रतिशत कर देतें हैं ?
महाराज - खरर्रर्रर्रर (खर्राटों की आवाज )
सभी मंत्रीगण ( जोर से )- महाराज की जय ! महाराज की जय !!
महाराज (घबरा कर उठते हैं )- ये क्या शोर मचा रखा है .क्यों चिल्ला रहें है आप सब ?
महामंत्री- महाराज, सभी कर्मचारी बहुत खुश हुए आपकी इस घोषणा से !
महाराज- किस घोषणा से ?
महामंत्री- वही जो अभी अभी आपने की !
महाराज - वही जो मैंने कौन सी घोषणा की ?
महामंत्री - महाराज, वही जो इस महीने में आप हर वर्ष करते हैं !
महाराज - इस महीने में हर वर्ष हम क्या घोषणा करते हैं ? ( कड़क आवाज में ) महामंत्री , आप सीधे सीधे बताएं , की हमने क्या घोषणा की ?
महामंत्री- यही की इस वर्ष सभी कर्मचारियों को ५० % की वेतन वृद्धि दी जाएगी !
महाराज - हमने ऐसा कहा ? ( सभी मंत्रियों की तरफ देख कर ) क्यों हमने ऐसा कहा ?
सभी मंत्रीगण ( एक स्वर में )- हाँ महाराज !
महाराज- चलो तो फिर ठीक है . किसी को इस विषय में कुछ कहना है ?
वित्त मंत्री कड़का सिंह - महाराज मैं कुछ कहना चाहता हूँ , बात ये है की शाही खजाना .......................
महामन्त्री - (थोड़ी तीखी आवाज में )- वित्त मंत्री , आपकी रिपोर्ट बाद में पेश कीजियेगा, पहले जो आज के मुख्य अजेंडा पूरे होने दीजिये .
वित्त मंत्री - जी महामंत्रीजी !
महामन्त्री - महाराज ! क्या सभी मंत्रियों का भत्ता भी पिछले वर्ष के ही अनुपात में बढ़ा कर दे दें !
महाराज - हाँ हाँ दे दीजिये !
महामंत्री - महाराज की जय हो !
सभी मंत्रीगण - महाराज की जय हो !
महाराज - वैसे ये भत्ता होता कितना है ?
महामंत्री- यही कोई वेतन का पांच गुना महाराज ! लेकिन चिंता न करें , ये सिर्फ आपके प्रिय मंत्रियों को ही मिलता है , और फालतू लोगों को नहीं !
महाराज - चलो ठीक है ; किसी को कुछ कहना है ?
वित्त मंत्री- महाराज, शाही खजाने की ..............
महामंत्री- आप फिर अजेंडा के बाहर जा रहें हैं !
महाराज- अगला अजेंडा क्या है ?
महामंत्री- महाराज, एक बुढिया कोई फ़रियाद लेकर आई है , क्या उसे पेश करें ?
महाराज- हाँ हाँ करो , जल्दी जल्दी निपटाओ ये सब .
द्वारपाल -( बाहर की तरफ चिल्ला कर ) - फरियादी बुढिया हाजिर हो !!!!!!!!!!!!!!!!!!

कोतवाल के साथ एक बुढिया का प्रवेश , मैले कुचैले कपडे , एक लाठी हाथ में लेकर आती है . महाराज उसके पास आते ही नाक बंद कर लेते हैं .

महाराज - ( नाक जोर से पकड़ते हुए )- हाँ वहीँ से बात करो . (मन ही मन - ये गरीब लोग नहाते क्यों नहीं )
बुढिया जोर जोर से रोने लगती है .
महाराज - महामंत्री , अरे यार आप किसे पकड़ कर ले आये हो . इसका रोना सुनने के लिए मुझे यहाँ बिठाया क्या ?
महामंत्री- (कड़क कर )- ऐ , बुढिया, जल्दी बताओ क्या बात है , महाराज के पास ज्यादा वक़्त नहीं है .
बुढिया - (सुबकते हुए )- महाराज, कोतवाल साहब के आदमी मेरे बेटे को जबरदस्ती पकड़ कर के गए , बिना किसी गलती के .
महाराज- क्यों कोतवाल , क्या बात है ?
कोतवाल- महाराज , इस बुढिया के लड़के को हमने रंगे हाथों पकड़ा .
महाराज- क्या चोरी कर रहा था ?
कोतवाल- नहीं महाराज , चोरी करता तो कोई बात नहीं थी .
महाराज- ऐसा कैसे ? अगर रंगे हाथों पकड़ा तो फिर चोरी ही की होगी न , मुहावरा तो यही कहता है .
कोतवाल- महाराज , क्षमा करें ! उसने चोरी नहीं की थी , लेकिन ...............
महाराज- अगर उसने चोरी नहीं की थी तो तुमने गलत मुहावरा कैसे बोला ?
कोतवाल- महाराज, गलती हो गयी .
महाराज- इस गलती की सजा मिलेगी, बरोबर मिलेगी . तुम जानते नहीं की हमारे दरबार में गलत मुहावरा बोलना कितना बड़ा अपराध है .
महामंत्री- महाराज, कोतवाल को माफ़ कर दीजिये , फिर कभी ऐसी गलती नहीं करेगा .
महाराज- महामंत्री, आप के कहने से हम इस बार इसे माफ़ कर देते हैं , लेकिन आइन्दा ऐसी गलती माफ़ नहीं की जायेगी .
कोतवाल (ठेंगा दिखाते हुए )- महाराज की जय हो !
महाराज- चलो ठीक है जाओ यहाँ से , अगला अजेंडा महामंत्री ?
महामंत्री- लेकिन महाराज , अजेंडा तो अभी शुरू ही नहीं हुआ , असली अजेंडा तो बुढिया का था .
महाराज- तो फिर ये कोतवाल दरबार का समय क्यों ख़राब कर रहा था . बोलो बुढिया क्या बात है ? अरे हाँ , तुम्हारे लड़के को कोतवाल ने पकड़ कर बंद कर दिया है . क्यों कोतवाल ? क्या इसके लड़के को तुमने रंगे हाथ पकड़ा था ?
कोतवाल - नहीं महाराज , हमने उसे बिना किसी रंग के पकड़ा था , क्योंकि वो चोरी नहीं कर रहा था .
महाराज- हुम्म्मम्म ! तो क्या जो कोई चोरी नहीं करता , बिना हाथ रंगे हुए उन्हें आप गिरफ्तार कर लेते हैं ?
कोतवाल (बातों में सनसनी लाते हुए ) - महाराज , इसका लड़का एक बोरी में २ किलो प्याज ले जा रहा था , हमने उसे धर दबोचा .
महाराज- प्याज ?
महामंत्री - प्याज ?
सभी मंत्री- प्याज ?
महाराज - ओह हो प्याज !
महामंत्री - ओह हो प्याज !
सभी मंत्री - ओह हो प्याज !
महाराज (फुसफुसा कर महामंत्री से )- महामन्त्री , क्या दो किलो प्याज लेकर जाना संविधान में अपराध है क्या ?
महामंत्री- पता नहीं महाराज , पूछ कर बताता हूँ ?
महामंत्री - कोतवाल साहब , आपने संविधान की किस धारा के अंतर्गत इस बुढिया के लड़के को पकड़ा .
कोतवाल- महाराज , धारा का तो पता नहीं , लेकिन इस वक़्त पूरे देश में प्याज की बहुत कमी चल रही है .ऐसे में एक आदमी अगर दो किलो प्याज लेकर जा रहा हो तो अपराध है .
महाराज- क्यों खाद्य मंत्री श्रीमान कुक्कड़ सिंह, क्या ये सच है की हमारे देश में इस वक़्त प्याज की कमी है ?
कुक्कड़ सिंह - जी महाराज ये सच है . हमारे देश में प्याज की कुल पैदावार कुल दस हजार क्विंटल प्रति माह है , राजमहल की जरूरत पूरी होने होने के बाद जो बचता है तो वो जनता को मिलता है .
महाराज- हुम्म्म्मम्म्म्म ! और राजमहल में महीने की कितनी खपत है ?
खाद्य मंत्री कुक्कड़ सिंह - महाराज , यही कोई नौ हजार क्विंटल प्रति माह !
महाराज- अच्छा तो हम लोग इतना प्याज खा जातें हैं ?
बुढिया- महाराज, न्याय करें आप , हम गरीब क्या खाएं ?
महाराज - गुड क्वेस्चन ?
महाराज - महामंत्री , आप आदेश निकल देवें- की प्याज को शाही मेवा का दर्जा दिया जाता है , इसलिए इस देश का सारा प्याज महल को भेज दिया जाए . अगर किसी ने इस देश में प्याज खाने की गलती की तो उसे राजद्रोही करार दिया जाएगा . पकडे जाने पर प्रति प्याज सौ कोड़ों की सजा दी जायेगी .
महामंत्री - महाराज की जय हो ! क्या न्याय किया है !
सभी मंत्री- महाराज की जय हो !
बुढिया – महाराज, लेकिन हम गरीब लोग क्या खाएं ?
महाराज – अनदर गुड क्वेस्चन ? महामंत्री , दूसरा आदेश ये करवा देवें की , महल पूरे देश का प्याज अब दुगुनी कीमत देकर खरीदेगा , ताकि गरीब लोग केक और बिस्कुट खाएं .
वित्त मंत्री – लेकिन महाराज, शाही खजाना ............
महामंत्री- बीच में मत बोलो वित्त मंत्री . महाराज की जय !
सभी मंत्री- महाराज की जय
कोतवाल महाराज की जय
बुढिया - हे भगवान् !
कोतवाल- चल बुढिया , हो गया फैसला .
बुढिया का प्रस्थान ! कोतवाल दरबार में अपने स्थान पर खड़ा हो जाता है .
महाराज - महामंत्री , अगला अजेंडा बताओ !
महामंत्री - महाराज , अगला अजेंडा है , सभी मंत्रियों की रपट !


महाराज गृह मंत्री की और देखते हैं .
महाराज- क्यों गृह मंत्री हलकट सिंह . पिछली बार क्या होम वर्क दिया गया था आपको ?
गृहमंत्री - महाराज, आपने आदेश दिया था की हमें अपने देश का नेशनल बर्ड फिक्स करना है , वो भी जनता की राय लेकर .
महाराज- गुड . तो आपने क्या किया .
गृहमंत्री -महाराज हमने जनता को अनुरोध किया की sms कर के बताये की हमारा नेशनल bird क्या होना चाहिए. लेकिन.....
महाराज- लेकिन क्या ? क्या जनता ने कोई response नहीं दिया?
गृहमंत्री - नहीं महाराज . ऐसी बात नहीं . उन्होंने अच्छा response दिया.
महाराज- तो फिर बताओ जनता ने कौन से पंक्षी को नेशनल bird के लिए चुना?
गृहमंत्री- महाराज जनता ने वोट दिया - मुर्गे को .
महाराज- बहुत अच्छा. मुर्गा तो हमें भी बहुत पसंद है .
गृहमंत्री - वही मुश्किल है महाराज . सबने लिखा है - तंदूरी चिकन
महाराज- ये तो और भी अच्छी बात है .तंदूरी चिकन तो हमें भी बहुत पसंद है .
सभी मंत्री- हाँ महाराज . हमें भी बहुत पसंद है .
महाराज- तो फिर घोषणा करवा दो की आज से हमारा नेशनल बर्ड है तंदूरी चिकन .
महामंत्री- महाराज की जय हो . क्या दूरदर्शिता है आपकी ?


महाराज- क्यों शिक्षा मंत्री साहेब! श्रीमान पोपट सिंघजी . आपका मंत्रालय क्या कर रहा है ?
पोपट सिंह- महाराज , हमारे विभाग ने बहुत काम किया है इस दौरान .महाराज का सपना था की हमें १०० प्रतिशत litrecy लानी है हमारे देश में .
महाराज- हाँ हमें याद है . और इस काम के लिए तुमने हमसे पचास लाख मुद्राएँ भी ली थी . बताओ क्या प्रगति है ?
पोपट सिंह - महाराज ! अंधेर नगरी का बच्चा बच्चा अब literate है . हर आदमी को अपना अंगूठा लगाना सिखा दिया है .अब कोई भी राज्य की आग्या होगी उस पर देश के बच्चे-बच्चे का अंगूठा लगवा लिया जायेगा .
महाराज- वाह पोपट सिंह . हम तुम्हारी इस achievement से बहुत खुश हुए . लेकिन तुम नट खट सिंह के मामले में फेल हो गए .
पोपट सिंह- जाने दीजिये महाराज, अभी बच्चा है .धीरे धीरे सब सीख जायेगा .


महाराज- वित्त मंत्री जी कड़का सिंह . आप क्यों मुह लटकाए बैठे हैं ? आप को क्या तकलीफ है ?
कड़का सिंह - महाराज. क्या बताऊँ ? कुछ अच्छी खबर नहीं है .
महाराज- क्यों . क्या तुम्हारी घर वाली ने पन्द्रहवें बच्चे को जन्म दे दिया क्या ?
कड़का सिंह - सोलहवां महाराज . वो तो आप की कृपा से पिछले महीने ही हो गया था .
महाराज - बहुत अच्छे . तो आप को तो इस सब से फुर्सत कहाँ मिलती होगी खजाने के लिए ? आप तो दूसरा ही खजाना भरने में लगे रहते हैं!
कड़का सिंह - महाराज, मैं शाही खजाने के बारे में ही कुछ बताना चाहता हूँ .
महाराज- तो फिर बताओ ना ?
कड़का सिंह- महाराज शाही खजाना बहुत जल्दी ही खाली हो जायेगा. वर्तमान गति से शायद तीन महीने में .
महाराज- क्या बकवास करते हो? पिछले हफ्ते तो तुमने बताया था ही खजाने में बहुत मुद्राएँ हैं ?
कड़का सिंह - महाराज पिछले हफ्ते मेरा calculator ख़राब हो गया था . इस चक्कर में सब गलत फिगर दे दिए .
महाराज- कोई रास्ते निकालो .पिछली बार जब ऐसा आर्थिक संकट आया था तो तुमने क्या किया था .
कड़का सिंह- महाराज हमने हंसने पर टैक्स लगा दिया था .
महाराज- तो फिर उस से खजाना भर गया था क्या ?
कड़का सिंह- नहीं महाराज . लोगों ने हँसना ही छोड़ दिया था .
महाराज- अरे तो कड़के , फिर ये बताओं ना की समस्या कैसे सुलझी थी ?
कड़का सिंह- महाराज . हमने मुद्रा बनाने की मशीन से बहुत मात्रा में नयी मुद्राएँ बना ली थी .
महाराज- सो सिम्पल. फिर बना डालो.
कड़का सिंह - महाराज ऐसा करने से हमारी मुद्राएँ बाजार में सस्ती हो जाएँगी. बच्चे इन मुद्राओं से गिल्ली डंडा खेलेंगे .
महाराज- हमारे कुछ समझ में नहीं आ रहा . हमारे पास जब मशीन है तो हम खजाना क्यों नहीं भरते .
कड़का सिंह - महाराज....
महाराज- बकवास बंद . वित्त मंत्री तुम हो. ये काम तुम्हारा है की खजाना कैसे भरे .अगले हफ्ते तक हमें खजाना भरा हुआ चाहिए .



महाराज- क्यों खाद्य मंत्री कुक्कट सिंह . क्या चल रहा है आज कल .
कुक्कट सिंह- महाराज मैं आज कल मुर्गे पैदा करने में लगा हूँ.
महाराज ( हँसते हुए ) - अच्छा. बहुत खूब . इस कड़के से तो अच्छे निकले तुम. मुर्गे पैदा कर के तुम इस देश की समस्या मिटा रहे हो . रोज कितने अंडे दे देती है तुम्हारी घर वाली .
कुक्कट सिंह- क्या महाराज? आप गलत समझ गए . मेरी घर वाली अंडे नहीं देती .
महाराज- तो क्या सीधे ही मुर्गियों से ..........
कुक्कट सिंह - नहीं महाराज . मैं नहीं . ये काम तो मुर्गों का है .
महाराज- तो फिर नया क्या हुआ. ये काम तो मुर्गे हमेशा से ही करते रहे हैं . तुम काहे की शाबाशी ले रहे हो.
कुक्कट सिंह - महाराज . बात ये है .......
महाराज- छोड़ो जाने दो . मुर्गों की बात सुन कर हमारे पेट में चूहे कूदने लगे . आज का दरबार यहीं ख़तम .हम चले अपने महल की तरफ .
(महाराज जाने के लिए खड़े होते हैं)
द्वारपाल- महाराज की जय हो
महाराज- हाँ हाँ ठीक है . जय हो जय हो .


महामंत्री - महाराज , अभी तो दरबारे आम बाकी है .
(महामंत्री को छोड़ कर बाकी सारे मंत्री दरबार से निकल जाते हैं . कोतवाल जो पीछे खड़ा था वो महाराज के सिंघासन के पास आ कर खड़ा हो जाता है )
महाराज- आम , आज क्या दरबार में आम आयेंगे
महामंत्री- महाराज, आप शायद भूल रहें है .आज आपका जन्मदिन है .हमने पूरे राज्य में मुनादी करा दी थी कि महाराज के दरबार में आम जनता आकर अपनी दुआएं और शुभकामनायें दे.
महाराज- शुभकामनाओं का हम क्या अचार डालेंगे.
महामंत्री- (धीरे से) - महाराज, शुभकामनाओं का मतलब होता है उपहार .बहुत लम्बी कतार लगी है महल के बाहर. आपकी आज्ञा हो तो अन्दर बुलाएँ सबको .............
महाराज (बोर होते हुए)- क्या महामंत्री, आप भी न ! आपने मुनादी करते वक़्त यह तो कहलवा दिया था न की जो भी आये अच्छे से नहा धो कर आये .बहुत बदबू मारती है ये जनता .
महामंत्री- महाराज, ये बात मुनादी में नहीं कह सकते , लेकिन जो आदमी दरबार में आता है वो नहा धो कर साफ़ सुथरा ही आता है.
महाराज - ठीक है शुरू करो.


द्वारपाल- अब दरबारे आम शुरू होता है .जनता एक एक कर के अन्दर भेजी जाये .
पहला व्यक्ति- महाराज की जय .मैं एक सुनार हूँ महाराज. आपके जन्मदिन पर मेरी छोटी सी भेंट - ये सोने की अंगूठी महाराज .
महाराज- महामंत्रीजी, ये भेंट ले कर रख दीजिये, और इस सुनार को २ स्वर्ण मुद्राएँ इनाम दिलवाइए .अगला .....

दूसरा व्यक्ति- महाराज की जय हो. महाराज मैं एक कवि हूँ. आप के सन्मान में एक कविता लाया हूँ.
महाराज- कहाँ लाये हो. मुझे तो तुम खाली हाथ दीखते हो.
महामंत्री- महाराज , कविता कागज पर लिख कर लाया है. आप को सुनाने के लिए
महाराज - ओके.सुनाओ जल्दी





दूसरा व्यक्ति- महाराज अर्ज किया है - मेरे देश का राजा चोपट
महाराज (दोहराते हैं )- वाह, मेरे देश का राजा चोपट - बहुत खूब
महामंत्री- मेरे देश का राजा चोपट
सभी मंत्री - मेरे देश का राजा चोपट
महाराज - खामोश , आगे सुनाओ
दूसरा व्यक्ति- महाराज अर्ज किया है - मेरे देश का राजा चोपट , मेरे देश का धंधा चोपट .
महाराज - वाह मेरे देश का राजा चोपट , मेरे देश का धंधा चो..... , महामंत्री - क्या आप को ये ठीक लग रहा है सुनने में ?
महामंत्री- हाँ महाराज - काफिया तो बराबर मिला है - मेरे देश का राजा चोपट , मेरे देश का धंधा चोपट
सभी मंत्री - वाह वाह , मेरे देश का राजा चोपट , मेरे देश का धंधा चोपट
महाराज ( गुस्से में )- आप लोग ये तोते की तरह बोलना बंद करेंगे ? आगे बोलो कवी !
दूसरा व्यक्ति- महाराज अर्ज किया है - मेरे देश का राजा चोपट , मेरे देश का धंधा चोपट . फिर भी है मनाती जनता, राजा का जन्मदिन मनता.
हैप्पी बर्थडे महाराज . हैप्पी बर्थडे महाराज, हैप्पी बर्थडे महाराज चोपट , हैप्पी बर्थडे टू यू......................."












महाराज- महामंत्री, ये आदमी क्या सुना रहा था . हमारी तारीफ थी या गाली.
महामंत्री- महाराज, कुछ समझ में नहीं आया .
महाराज- हमें कुछ जम नहीं रहा . इस कवि को यहाँ से चलता करो.
(कवि का प्रस्थान) क्या, महामंत्री, तुम तो कह रहे थे कि लोग उपहार लायेंगे
महामंत्री- महाराज, अभी तो बहुत लोग आने बाकी है , अगला आदमी..

द्वारपाल- अगला आदमी हाजिर करो ..........
अगला व्यक्ति- महाराज की जय हो. महाराज मैं चर्मकार हूँ . मैं ये चमड़े की चप्पल आप के लिए बना कर लाया हूँ.
महाराज (गुस्से में) - ये सड़ी हुई चप्पल हम पहनेंगे? कोतवाल, ये चप्पले इस के गले में डाल के इसे यहाँ से भगा दो.

द्वारपाल- अगला आदमी हाजिर करो ..........
(चर्मकार रोनी सी सूरत बना कर जाता है )
अगला व्यक्ति- महाराज की जय हो. महाराज, मैं एक मामूली सा किसान हूँ .मेरे खेत में हरी मिर्च लगती है. ताजा हरी मिर्च तोड़ कर लाया हूँ आप के लिए.....
महाराज - इस्स....... कमबख्त कुछ भी उठा लाते हैं . इस हरी मिर्च को इसके अन्दर घुसा दो (अंगुली को ऊपर की तरफ उठा कर इशारा करते हुए) ......
कोतवाल- जी महाराज, जो आज्ञा , चल बे मिर्ची....
(किसान रोते हुए जाता है )
द्वारपाल- अगला आदमी हाजिर करो ..........
अगला आदमी- महाराज की जय हो. महाराज, मैं अपने खेत के निम्बू तोड़ कर लाया हूँ आप के लिए.
महाराज (झल्लाते हुए)- क्या बकवास है. कोतवाल..., ले जाओ इसे भी और घुसा दो ये निम्बू.......
कोतवाल -(अंगुली से ऊपर की तरफ इशारा करते हुए )- वहीँ महाराज?
महाराज- हाँ ,और कहाँ?
(निम्बू वाला किसान जोर जोर से हंसने लगता है , सब लोग आश्चर्य से उसको देखने लगते हैं )
महाराज- ए , रुको तुम. मिर्ची वाला हुक्म सुन कर रो रहा था .तुम इतना हंस क्यों रहे हो ?
किसान जोर जोर से हँसता रहता है, फिर बोलने की कोशिश करता है ..
किसान - हे हे हेह ....क्षमा करें....हेहे ...महा...हेहे राज....हेहे ......दर असल बात ये है महाराज..हेहे .....मेरे बाद लाइन में खड़ा है .....ददुआ किसान .......और महाराज......हेहे....वो आपके लिए लाया है तरबूज....हे...हे .....
(सभी दरबारी हंसने लगते हैं, महाराज भी जोर जोर से हंसने लगते हैं .)
महाराज (हँसते हुए)- कोतवाल , इस किसान को इनाम दे दो.महामंत्री,आज के लिए मेरा जन्मदिन बहुत हो गया . मैं तो महल में जाता हूँ. अब आगे आने वाले उपहारों ....(हँसते हैं).....का फैसला आप ही करना ..................
(महाराज का प्रस्थान )


पर्दा गिरता है .




Scene-3

(महाराज चोपट सिंह का शयन कक्ष .महाराज एक आलीशान कुर्सी पर बैठे हैं .पास ही दूसरी कुर्सी पर महारानी चौपाटी देवी बैठी किताब पढ़ रही है . एक सेवक महाराज के सर पर तेल की मालिश कर रहा है .)

महाराज- जरा जोर से रगड़. रोटी नहीं खाता क्या ?
सेवक - जी हुजूर
महारानी- कितनी देर से रगड़ रहा है . अब बस भी करो जी .

(द्वारपाल का प्रवेश .)
द्वारपाल- महाराज की जय ! (और ठेंगा दिखता है )
महाराज (चिढ़ते हुए) - ठीक है ठीक है . काम क्या है .
द्वारपाल - महाराज श्रीमान बुल शीट सिंह पधारे हैं , कहते हैं जरूरी काम है .
महारानी- सुबह सुबह ये क्या बुल शीट है ?
महाराज- बुल शीट ही है.
द्वारपाल- हाँ महाराज, बुल शीट सिंह जी ही है .
महाराज- तुम्हे बीच में बोलने के लिए किसने बोला.
महारानी- इतने तडके उसे आपसे क्या काम है ?
द्वारपाल- महारानीजी. उनका कहना है की काम बहुत जरूरी और महतवपूर्ण है .
महाराज- ठीक है भेज दो उसको .
द्वारपाल- जो आज्ञा महाराज

(द्वारपाल का प्रस्थान .)

महाराज- (महारानी से) - डार्लिंग , बुल शीट का इतनी सुबह आना ... कुछ अशुभ संकेत लगता है .
महारानी- क्यों वो क्या इतना मनहूस है ?
महाराज- नहीं ऐसी बात नहीं. (धीरे से फुसफुसा कर)- वो हमारे गुप्तचर विभाग का प्रमुख है .

(तभी बुल शीट सिंह का प्रवेश)

बुल शीट - महाराज की जय हो .
महाराज ( चिढ कर ) - जय हो. ......सवेरे सवेरे क्या जय बोलने आये हो .
बुल शीट (थोड़ी घबराहट के साथ) - नहीं महाराज बहुत जरूरी बात है
महाराज- तो बको न .
महारानी (महाराज को आँख दिखाती हुई) - क्या बात है बुल शीट जी ?
बुल शीट ( आँख के इशारे से सेवक की और इशारा करते हुए)- महारानी बात बिलकुल गोपनीय है . इस लिए......
महारानी- (तीखी आवाज में )- क्या सारे दिन इसे सर पर सवार रखोगे ? सेवक, जाओ यहाँ से. बहुत हो गयी आज की मालिश .
सेवक- (महाराज से)- जाऊं महाराज ?
महाराज ( खिसिया कर) - क्या शाही फरमान जारी करूं? जाओ .

(सेवक का प्रस्थान )

महाराज- अब बोलो बुल शीट . क्या माजरा है ?
बुल शीट (गंभीर होकर)- महाराज गजब हो गया . महल में कुछ लोग साजिश कर रहे हैं .
महारानी- साजिश? किस बात की साजिश ?
महाराज- ओफ्फो ! डार्लिंग उसे बोलने तो दो न ?
बुल शीट - महाराज आपको मारने की साजिश .....

(महाराज और महारानी दोनों चौंक जाते हैं.)

महारानी- वाट अ बुल शीट !
बुल शीट - बुल शीट सिंह , महारानीजी .
महाराज- बुल शीट , तुम जानते हो तुम क्या बकवास कर रहे हो ?
बुल शीट - हाँ महाराज .
महारानी- यानि की तुम बकवास कर रहे हो ?
बुल शीट - नहीं महारानीजी
महाराज- अभी तो तुमने हाँ कहा था ?
बुल शीट - महाराज, मैं जानता हूँ - इसके लिए हाँ . बकवास करता हूँ- ना.
महाराज- कहाँ से देख सुन कर आ रहे हो ये मनगढ़ंत कहानी ? ज्यादा उपन्यास पढने लगे हो क्या ?
बुल शीट- महाराज, मैं अपने कानों से देख कर आ रहा हूँ .
महारानी- बुल शीट !!
बुल शीट - जी महारानी .
महाराज- महारानी कह रही है की तुम अफीम की पिनक में बकवास कर रहे हो .
बुल शीट - महाराज . मेरा विश्वास कीजिये .कल रात जब मैं महल के पश्चिमी गलियारे से गुजर रहा था तो मैंने सेवकों के कक्ष से आती हुई कुछ आवाजें सुनी .
महाराज- क्या सुनी?
बुल शीट - महाराज एक बोल रहा था - बहुत हो चुकी राजा की मनमानी .अब राजा की खैर नहीं. काम तमाम ही समझो .
महाराज ( घबरा कर) - उसके बाद क्या हुआ ?
बुल शीट - मैं घबरा कर वहां से भाग खड़ा हुआ .
महाराज (क्रोध में )- बेवक़ूफ़ आदमी . तुम्हे यह पता करना चाहिए था की कौन लोग थे ? तुम हमारे गुप्तचर हो. पता लगाना तुम्हारा काम है , भाग खड़ा होना नहीं.
बुल शीट - महाराज . मैं बहुत घबरा गया था . मुझे लगा की ये लोग अगर मुझे देख लेंगे तो मुझे भी मार डालेंगे .
महाराज-(क्रोध में )- मुर्ख आदमी . मरने से इतना डरते हो ! तुम राजमहल में काम करने लायक आदमी नहीं हो.
महारानी- लेकिन डार्लिंग , ये अगर वहां मारा जाता तो ये खबर तुम्हे कौन देता ?
बुल शीट (जल्दी जल्दी) - हाँ महाराज, मैंने भी यही सोचा .
महाराज - ठीक है ठीक है . लेकिन अब हम क्या करें ? हमें तो बहुत डर लग रहा है .
महारानी- डार्लिंग, अभी तो आप उस से कह रहे थे की मरने से नहीं डरना चाहिए . अब आप खुद डर रहें है ?
महाराज (नाराजगी से)- उसकी बात और थी . महारानीजी, हमारी जान मुसीबत में फंसी है और आप ........ हमें ताने दे रही हैं. आप कुछ सोचिये .
महारानी- (सोचते हुए) - ओके , मैं कुछ सोचती हूँ .
(कुछ देर तक सोचने के बाद)
महारानी- (खुश होकर)- आईडिया सर जी. this is all very exciting . it is like writing a murder mistry .
महाराज (घबरा कर) - murder mistry !!! लेकिन डार्लिंग , murder mistry में तो पहले murder होता है और फिर लास्ट सीन में कातिल का पता चलता है .कुछ आईडिया बदल कर सोचो डार्लिंग .
बुल शीट- महाराज, मैं कुछ कहूं.
महाराज- कहो बुल शीट . लेकिन कोई सेंसिबल बात करना, प्लीज .
बुल शीट - मेरे विचार में यह योजना महल के ही किसी व्यक्ति की है .
महाराज (गंभीर होकर)- हूँ ....
बुल शीट - हमें हर व्यक्ति पर शक करना चाहिए .
महाराज- हूँ.....
बुल शीट (महारानी की और देखते हुए )- उन पर भी जो आपके बिलकुल न....ज.....दी....क... हो ........
महाराज (महारानी की और देखते हुए)- उन पर भी.......
महारानी- (क्रोध में) - यू बुल शीट . तुमने मुझ पर भी शक करने को बोला . तुम्हे अभी फंIसी पर लटकवा दूँगी .
बुल शीट (घिघियाते हुए)- महारानीजी, मेरा मतलब ये नहीं था .मुझे माफ़ करें
महाराज- कूल डाउन डार्लिंग .इसका मतलब ये था की तुम्हे छोड़ कर किसी पर भी . (बुल शीट की और मुड़ते हुए ) क्यों बुल शीट ?
बुल शीट - हाँ महाराज
राजकुमार नट खट सिंह को भी छोड़ कर भी? हैं न ?
बुल शीट - हाँ महाराज . और हाँ मुझे भी छोड़ कर
महारानी- (चिढ़ते हुए )- हाँ, अब सारी बातें ये तय करेगा न , ये मुआ बुल शीट . (बुल शीट की और मुड़ कर)- तुम्हें किस ख़ुशी में छोड़ कर? तुम महाराज के क्या लगते हो. you are just bull shit .

महाराज (समझाते हुए )- डार्लिंग, जरा सोचो , ये खबर हमारे पास कौन लाया था ?बुल शीट. तो फिर इस पर हम शक कैसे कर सकते हैं? खैर छोड़ो . देखो इस बात का पता हम तीनों के अलावा किसी चौथे को न लगे . नहीं तो हमारा would be murderer चोकन्ना हो जायेगा .हम यूँ दिखायेंगे जैसे हमें कुछ भी पता ही नहीं . सब कुछ सामान्य रूप से चलता रहेगा . साथ ही साथ गुप्तचर विभाग बदमाशों को खोज निकालेगा. कैसा रहा मेरा प्लान ?
महारानी- बुल शीट
बुल शीट- जी महारानी
महारानी- shut -up. बीच में मत बोलो. मैंने तुमसे कुछ नहीं कहा . तुम अकेले बुल शीट नहीं हो. महाराज की प्लानिंग भी बुल शीट है .
महाराज- कम ओन डार्लिंग. महारानी- आप का दिमाग फिर गया है महाराज. आप कहते हैं की आप अपनी सामान्य दिनचर्या से चलेंगे . ताकि आपके दुश्मन कामयाब हो जाएँ अपने इरादों में और आप का खून कर दें.
महाराज- इस्स...... आप इतने कठोर शब्द क्यों कह रही हैं. मुझे और ज्यादा डर लगने लगता है.
बुल शीट- महाराज! महारानीजी ठीक कहती हैं. आप को पूर्ण सुरक्षा के अन्दर रहने की जरूरत है . आप को अपने कक्षा से बाहर नहीं जाना चाहिए. और न ही किसी से मिलना चाहिए .
महाराज- हे भगवन ! ये सब क्या हो रहा है. महारानी, आप इसी वक़्त महामंत्री को बुला कर हमारे लिए z क्लास सिक्यूरिटी का इन्तेजाम करवाइए.
महारानी- डार्लिंग आप शायद भूल रहें है की हम इस वक़्त न महा मंत्री पर और न ही सिक्यूरिटी गार्ड्स पर विश्वास कर सकते हैं.
महाराज (दुखी हो कर)- हे भगवन . ये क्या चक्रव्यूह है ? मुझे अकेला छोड़ दो .
(बुल शीट सिंह का प्रस्थान)



दृश्य - ४
महाराज पलंग पर लेते हैं, मुह के ऊपर तक चादर ओढ़ के. तकिये के दोनों तरफ दो तलवारें रखी हैं. महारानी सामने सोफा पर बैठी फिल्मी पत्रिका पढ़ रही है .
सेवक भोजन की trolley पर शाही भोजन लेकर आता है .
सेवक- महाराज ! आपका भोजन परोसा जा चुका है .
महाराज ( कूद कर उठ जाते हैं )- लाओ लाओ पेट में चूहे दौड़ रहें हैं .
महारानी (सेवक से)- तुम बाहर जाओ.
महारानी (महाराज से)- डार्लिंग . इस खाने में जहर मिला हुआ हो सकता है . जब तक बदमाशों का पता नहीं चल जाता तब तक नो फ़ूड फॉर यू .
महाराज (बेचैन होकर)- लेकिन महारानी ऐसे कैसे चलेगा . भूखे पेट हम दरबार में कैसे जायेंगे .
महारानी- महाराज . आप कहीं नहीं जा रहें हैं. मैंने महामंत्रीजी को खबर भेज दी है कि आप बीमार हैं. इसलिए उन्होंने दरबार कि मीटिंग आज कैंसल कर दी है .


महाराज- महारानी. इतने संकट कि घडी है और हमारा नालायक बेटा कहीं नजर नहीं आ रहा .
महारानी- उसकी चिंता न करें. वो बहुत समझदार है . विलायतसे पढने के बाद कितना स्मार्ट हो गया है .
महाराज- खाक स्मार्ट हो गया है. दरबार में आता नहीं .घर में दीखता नहीं. और वो शिक्षा मंत्री से टूशन पढने कि जगह किसी गोरी मेम को लेकर पहाड़ों पे घूम रहा है. आप के लाड प्यार ने उसे बिगाड़ दिया है .
महारानी- उसे घूमने दीजिये . वो पहाड़ों पर भी कोई न कोई दिमागी काम कर रहा होगा .
महाराज (व्यंगात्मक भाव से)- उस मेम के साथ. फंसा लेगी वो हमारे बेटे को .
महारानी (मुस्कुरा कर) - क्यों नहीं . वो है ही ऐसा
महाराज (सर पर हाथ मार के)- यहाँ तो सारे कुवें में ही भंग पड़ी है .

(राजकुमार नट खट सिंह का प्रवेश)
नट खट - hai डैड ! hai मोम !नोट वेल डैड .
महाराज - तुम हो कहाँ नट खट . दरबार में भी नहीं आ रहे आजकल.
नट खट - डैड . मैं बहुत बीजी हूँ . और दरबार बिलकुल बोरिंग जगह है .
महाराज- देख लिया महारानी अपने सपूत को . क्या भविष्य है हमारा !
महारानी- आप तो आते ही उसके पीछे पड़ गए . क्यों बेटा कहाँ बीजी हो ?
नट खट - माँ , मेरी एक दोस्त अमेरिका से आयी है , उसे ही अपना देश घूमा रहा हूँ.
महारानी- ठीक है बेटा . लेकिन तुम्हे अपने डैड की भी मदद करनी चाहिए .
नट खट - डैड को मेरी किसी भी मदद की जरूरत नहीं, मोम.
महारानी- प्रिंस. इस वक़्त तुम्हारे डैड मुसीबत में हैं . उन्हें पता चला है की कोई उन्हें मारने की साजिश कर रहा है .
नट खट - wow ! How interesting ! You mean conspiracy to kill . Assasination of emperor . Its a great story dad .
महाराज (दुखी होकर )- हे भगवन ये क्या औलाद दी है मुझे .
महारानी- प्रिंस. ये स्टोरी नहीं है .महल के detective बुल शीट सिंह ने खबर दी है .
नट खट- बुल शीट. डोंट worry डैड. I विल टेक केयर . i got to go now . hillary is waiting for me for lunch . Bye dad. Take care. love you dad. love you mom.
महारानी - I love you too darling.
(राजकुमार का प्रस्थान)

. (द्वारपाल का प्रवेश)
द्वारपाल- महाराज . महा मंत्री श्रीमान लम्पट सिंह पधारे हैं.
महाराज ( घबरा कर ) - क्यों पधारे हैं?
महारानी (महाराज को देख कर फिर द्वारपाल से )- उन्हें अन्दर भेज दो .
महाराज- डार्लिंग ये क्या कर रही हो. हो सकता है यही दुष्ट मेरी.........
महारानी- घबराइए मत . इन्हें अगर नहीं बुलाएँगे तो महल में न जाने कितनी गलत सलत बातें फ़ैल जाएगी. बस सावधान रहिएगा . एक हाथ हर समय तलवार पर रखियेगा .
(महाराज घबरा कर तलवार की मूठ पर हाथ रखते हैं )

महा मंत्री का प्रवेश .
महा मंत्री लम्पट सिंह : महाराज की जय हो ( और अंगूठा दिखता है)
महाराजा - हाँ हाँ जय हो . और कुछ?
लम्पट - सुना है महाराज के दुश्मनों की तबियत ठीक नहीं है ?
महाराज - क्यों ? क्या आपकी तबियत भी ठीक नहीं है ?
लम्पट (हँसते हुए )- कितना अच्छा मजाक कर रहें है आप ! कौन कमबख्त कहता है की आप की तबियत ठीक नहीं है .
महाराज (तन कर ) - हम कहते हैं .
लम्पट ( अकबका कर )- क्षमा करें महाराज .
महारानी- लम्पट जी . कोई खास वजह यहाँ आने की ?
लम्पट - खास तो नहीं , लेकिन एक चिंता का विषय है .
महाराज संभल कर बैठ जाते हैं , तलवार निकालने की मुद्रा में .
महामंत्री थोडा दर कर पीछे हट जाते हैं .
महारानी- बताइए , चिंता की क्या बाट है ?
लम्पट- फिलहाल तो महाराज की अवस्था ही ज्यादा चिंता वाली बात लग रही है .
महाराज (झुंझला कर )- काम की बात करो लम्पट .
लम्पट (थोडा डरते हुए )- महाराज वित्त मंत्री ने खजाने की हालत चिंता जनक बताई है .
महाराज - तो नयी बात क्या है . वो तो कल भी बताई थी .
लम्पट (घबराहट से )- नहीं महाराज, कल से भी ज्यादा गंभीर बात है . वित्त मंत्री के हिसाब से खजाना एक हफ्ते में ही खाली हो जायेगा .
महाराज (गुस्से में )- इस वित्त मंत्री की तो ऐसी तैसी . साला मंत्री है या घशियारा . कल कहता था तीन महिना आज बोलता है एक हफ्ता .
महारानी- डार्लिंग, आप की तबियत ठीक नहीं है , इतना गुस्सा मत करो. (महा मंत्री से ) ...महा मंत्री देश के सारे खर्चों में ५०% की कटौती कर दो .
लम्पट - महारानी अगर ऐसा किया तो महल का तो किचन आज ही बंद हो जायेगा .
महारानी - शायद आपने ठीक से सुना नहीं . मैंने कहा था देश के खर्चों में...... न की महल के खर्चों में.......
लम्पट - महारानी . हमारे नेशनल budget का ८० % तो महल पर ही खर्च होता है.
महाराज - ओये लम्पट . तू मुझे डराने आया है यहाँ . तू सोचता है की तेरी ये सब बातें सुन कर मैं डर से मर जाऊँगा .( तलवार निकाल लेते हैं )
लम्पट - (घबरा कर) - महारानीजी, मुझे तो इन पर कोई खतरनाक दौरा पड़ा दीखता है .जाकर राजवैध को बुलवाता हूँ .
महारानी- लम्पट जी . बहुत दिनों से कोई ब्रेक नहीं लिया था न इसी लिए tired हैं . इन्हें एक ब्रेक की जरूरत है .
लम्पट-(महारानी से) - शायद आप ठीक कहती हैं. आप कहेँ तो दो तीन दिनों के लिए शिकार पर जाने की व्यवस्था कर दूं .महाराज का मन बदल जायेगा .
महाराज ( व्यंग से)- और साथ ही शिकार भी हो जायेगा.
लम्पट (मुस्कुराते हुए )- जायेंगे तो शिकार तो होगा ही .

महारानी- जाने दीजिये , महा मंत्रीजी. इनका मूड नहीं है . by the way , कल रात आप कहाँ थे ?
लम्पट (सोचते हुए) - कल रा ...त............, हाँ कल रात मैं एक विशेष बैठक में व्यस्त था.
महारानी (गंभीर होकर)- हूम........ हमारा भी यही अंदाज था . आप जा सकते हैं .
लम्पट (परेशां मुद्रा )- जो आग्या महारानीजी .

(महामंत्री लम्पट सिंह का प्रस्थान )

महाराज- मुझे पूरा यकीन है , यही बदमाश मुझे मार कर मेरी गद्दी पर कब्ज़ा करना चाहता है . आप इतनी निश्चिंत होकर बैठी हैं महारानी. क्या आपको मेरी जान की फिक्र नहीं है ?
महारानी- मुझे इस से भी ज्यादा फिक्र है शाही खजाने की .
महाराज- क्या? आपको मुझसे ज्यादा खजाना प्रिय है ?
महारानी- महाराज, अगर खजाने का कुछ इन्तेजाम नहीं किया गया न तो हूम लोग वैसे ही मरने जैसे हो जायेंगे . हमें तो जनता ही मार डालेगी .
महाराज- क्या महारानी आप भी डराने लगी .........

(द्वारपाल का प्रवेश )
द्वारपाल - महाराज ! राजवैध मरघट सिंह जी आप को मिलने के लिए आये हैं .
महाराज - राजवैध , ये कौन सी दावा देगा अब .
महारानी (द्वारपाल से )- राजवैध को अन्दर भेज दो .
मरघट - महाराज की जय हो . (अंगूठा दिखता है )
महाराज - हाँ हाँ जय हो .
मरघट - महाराज, इतने अश्वस्थ हैं सुबह से. मुझे सूचना क्यों नहीं दी .
महाराज (मन ही मन में )- ताकि सुबह सुबह ही काम तमाम हो जाता .
मरघट - महाराज, कुछ कहा आपने ?
महारानी- नहीं नहीं , आपसे कुछ नहीं कहा .
मरघट - महाराज क्या लक्षण है, जरा बताएँगे .
महाराज (क्रोध में)- यहाँ न तो कोई लक्षण है और न कोई भक्षण है. आपकी कमी थी हमें मरघट तक भेजने की सो आप भी आ गए .
मरघट - (सोचते हुए) - यह तो कोई मानसिक विकार लगता है .साथ में शायद पित्त की शिकायत , इसी लिए भोजन भी नहीं खाया . क्या मैं आपकी नब्ज देख सकता हूँ ?
महाराज- अभी तक तो चल रही है, आगे की राम जाने .
मरघट - महाराज. ऐसे अशुभ वचन न कहें . मेरे रहते आप को कौन मार सकता है ?
महाराज (झल्ला कर) - जी हाँ आप के रहते हुए भला और कौन मार सकता है ?
महारानी- राजवैध मरघट सिंह जी . महाराज का मूड अभी ठीक नहीं है. अभी आप जाएँ. जरूरत पड़ी तो मैं आप को बुलवा भेजूंगी.
मरघट - जैसी आप की आज्ञा महारानीजी . ( जाने के लिए मुड़ता है )
महारानी - मरघट जी . कल रात आप कहाँ थे ?
मरघट (सोचते हुए )- कल रा.....त...... मैं ..........था ......; हाँ याद आया . कल रात मैं महल की चिकित्सा प्रयोगशाला में था . कुछ नयी किस्म की दवाओं के लिए जड़ी बूटी घिस रहा था .
महारानी- नयी किस्म की दवाएं ... (मन ही मन).... किस पर आजमाने को ...... (मरघट से )...आप जाएँ राजवैध .....
मरघट - जो आज्ञा महारानीजी .
(राजवैध मरघट सिंह का प्रस्थान )

महाराज बेचैन होकर इधर से उधर चक्कर काटते हैं.

महाराज- डार्लिंग . भूख से जान निकल रही है . ऐसा कब तक चलेगा .आप तो देसी घी के परांठे दबा कर बैठीं है .
महारानी- हनी . ये आप के प्राणों कि रक्षा के लिए ही तो हो रहा है .कम से कम एक दिन तो आप उपवास करो. तब तक शायद कुछ पता चल जाये . और फिर आप का थोडा वजन ही तो घटेगा , वो अलग फायदा .है न जानू ?

तभी द्वारपाल का प्रवेश .
द्वारपाल- महाराज कि जय . (ठेंगा दिखाता है )
महाराज- जल्दी बको .
द्वारपाल- महाराज - आपकी बुआजी आई हैं.
महारानी - बुआजी ?
महाराज- अरे वो बहरी बुढिया. क्या लेने आई है .कह दो महाराज कि तबियत ठीक नहीं है.
द्वारपाल- उन्हें पता है महाराज. इसी लिए आप का हाल चाल पूछने आई है .
महारानी- उन्हें सन्मान से अन्दर ले आओ.
महाराजा - क्या महारानी, आप भी न!
महारानी- थोड़ी देर उनसे बात करने से आपका मन बहल जायेगा. उन्हें भी अच्छा लगेगा .
महाराज- अरे बात चीत तो उस से होती न जिसको कुछ सुनता हो. उनका तो इन कमिंग बिलकुल बंद है .

तभी बुआजी अन्दर आती हैं.

बुआजी द्वारपाल को धमकाती हुई आती है -
बुआजी (गुस्से में )- तू यहाँ क्या काम करता है ? तेरी छुट्टी करवाती हूँ .
द्वारपाल (हाथ जोड़ते हुए )- माताजी , मैं यहाँ का द्वारपाल हूँ .
बुआजी - तू चाहे रामपाल है चाहे श्यामपाल , तेरी शिकायत करूंगी पोपत से .
द्वारपाल - माताजी , मेहेरबानी कीजिये .
बुआजी - कहानी कीजिये , मैं क्या यहाँ कहानी करने आई हूँ नाशपीटे !
द्वारपाल - माताजी, आप माफ़ कर दीजिये !
बुआजी - अब बोलता है साफ़ कर दीजिये .तेरी नाक है तो तुम ही साफ़ करो , मैं क्यों करूं ? पोपत छोटा था तो उसकी नाक तो मैं ही साफ़ करती थी .

(बुआजी अन्दर आती हैं.)

महारानी - बुआजी, चरण स्पर्श !
बुआजी - हैं ? फर्श ? फर्श तो ठीक ही है .
महारानी - बुआजी , मैंने कहा चरण ...... वो जाने दीजिये .
बुआजी - दो आने दीजिये ; ये क्या बात कही महारानी , दो आने लेकर क्या करोगी ? और मेरे पास तो वो भी नहीं है .
महारानी (मन ही मन )- बहुत बोर करती है बुढिया.
बुआजी- मुझे बुढिया कहा ?
महारानी (मन ही मन में )- नहीं सुनने वाली सब सुन लेती है . (जोर से )- नहीं बुआजी मैंने कहा बहुत बढ़िया .
महाराज - बुआजी कैसे आना हुआ ?
बुआजी - खाना हुआ ? हाँ बेता , खाना तो मेरा जल्दी ही हो जाता है न . तुम लोग खाओ .
महाराज (मन ही मन कोसते हुए )- तकदीर वाली हो जो खाना खा लिया . यहाँ तो भूख के मारे जान निकल रही है .


(महाराज सोने की एक्टिंग करते हैं .)

बुआजी - बहूरानी , बेता पोपत क्या सो गया है ?
महारानी - हाँ बुआजी , ये सो गए हैं .
बुआजी - ओह , मैं समझी सो रहा है .

(बुआजी पोपत की तरफ बढती है )

बुआजी (पोपली आवाज में) - आले बेता पोपत .क्या हो गया. सुना तू बीमार है . इसी लिए चली आई .
महाराज (थोडा झल्ला कर )- क्या हिंदी के अखबार में पढ़ा आपने ?
बुआजी - भिन्डी का अचार , न बेता , बीमारी में कोई भी अचार ठीक नहीं है. वैध्य को दिखाया ?
तुझे याद है न जब तू छोटा था तो मैं ही तुझे दवा की घुट्टी पिलाती थी.
महाराज (आश्चर्य से )- दवा की घुट्टी ?
बुआजी - दवा की छुट्टी ? न बेता, दवा की छुट्टी करने से कैसे चलेगा ? अच्छा बता , पेट साफ़ हुआ या नहीं ?
महाराज (गुस्से में )- पेट क्या मैं खुद ही साफ़ होने वाला हूँ , अब तो !
बुआजी - ऐसे नहीं होगा साफ़ , जमाल घोटा में हींग मिला के खाओ, जल्दी साफ़ हो जायेगा .
महाराज- हे भगवन, लोगों को इतना बूढा क्यों बनाता है ? इस बुढिया को जल्दी बुला ले .
बुआजी - हे पोपत, ऐसा नहीं बोलते ; तुझे क्यों बुला ले ; तेरे से पहले तो मुझे बुला ले .राज्वैध्यजी को दिखाया ?
महारानी- हाँ बुआजी .राजवैध्यजी आये थे .
बुआजी (अनसुनी करते हुए)- बेता , क्या बीमारी है ?
महाराज (चिढ कर)- मौत की बीमारी है.
बुआजी- मामूली बीमारी है .जल्दी ठीक हो जाओगे . किस से इलाज करवा रहे हो बेता ?
महाराज (चिल्लाते हुए)- यमराज से
बुआजी- बहुत अच्छा वैध है. तुम्हारे फूफाजी का इलाज भी उसने ही किया था .खाने को क्या दिया है ?
महाराज (गुस्से में)- जहर
बुआजी- दोनों समय परहेज से खाना बेता . अब मैं चलती हूँ.तुम आराम करो .
महाराज (मन ही मन में)- इतने आशीर्वाद मिलने के बाद तो मर कर ही आराम मिलेगा .
बुआजी (महारानी से )- बहूरानी , तुमने तो खाना खाया न ?
महाराज- देसी घी के पकवान दबा के बैठी है .
बुआजी - हैं बहूरानी ? ऐसा नहीं करते ; पान चबा के बैठने से थोड़ी ही पोपत ठीक हो जाएगा .चलो उठ कर खाना खा लो .
महारानी - बुआजी , मैंने खाना खा लिया है .
बुआजी - तुम्हारी मर्जी ! मेरा फर्ज तो तुम्हे समझाना था . तुम थक गयी हो तो थोडा आराम कर लो , दो चार घन्टे मैं बैठ जाती हूँ , बेटे पोपत के पास.
महाराज ( चिल्लाते हुए )- नहीं ! मैं ठीक हूँ . आप जाईये अब .
महारानी (कुटिल मुस्कान के साथ )- डार्लिंग , बुआ जी का मन हो तो...................
महाराज ( रोनी सूरत बना कर )- नहीं डार्लिंग, तुम ऐसा नहीं कर सकती मेरे साथ .
बुआजी - धत पगला , बुआ को डार्लिंग डार्लिंग क्या बोलता है . बेता तुम दोनों मेरी चिंता मत करो , मुझे कोई परेशानी नहीं होगी .
महारानी - नहीं , बुआजी ! आप चिंता न करें , मैं संभाल लूंगी ( ऐसा बोलते बोलते बुआजी को छड़ी पकडाती है , और खड़ी होकर दरवाजे की तरफ ले जाती है )

बुआजी - अब मैं चलती हूँ.तुम आराम करो

(बुआजी समझ जाती है , और जाने के लिए बढती है .)

(बुआजी का प्रश्थान )
महाराज (रोते हुए) - महारानी, आज का दिन तो किसी तरह बीत गया , अब रात कैसे बीतेगी ? पेट में अन्न का एक दाना तक नहीं गया .भूख और डर के मारे एक एक पल भारी हो गया है .
महारानी- डार्लिंग, थोडा धीरज रखो.थोड़ी ही देर में अपना जासूस बुल शीट आता होगा .वह जरूर कोई न कोई ठोस खबर लायेगा .
महाराज- वो गधा क्या लायेगा . वो तो मेरे से भी ज्यादा डरपोक है ........



(तभी राजकुमार नटख़ट सिंह का प्रवेश .)

नटखट - डैड ! climax सीन आ गया है .
महाराज (घबरा कर) - यानि की murder सीन . क्या राजकुमार तुम?
नटखट - डैड! जुलिअस सीजर की तरह dailogue मत बोलिए . क्योंकि इस स्टोरी का climax एक घटिया हिंदी फिल्म जैसा है .
महारानी- नटखट , हमारी जान जा रही है और तू पहेलियाँ बुझा रहा है ? क्या उलझन है ?
नटखट - अभी सब कुछ सुलझाता हूँ .

(नटखट बाहर जाता है . थोड़ी देर में महल के रसोइये को कान पकड़ कर बाहर लाता है. )

नटखट - डैड! राजा को मारने का प्लान इसका था .
महारानी (आश्चर्य से ) - विश्वाश नहीं होता.............
महाराज (आग बबूला होकर) - मक्कार . तुम हमारे इतने पुराने खानसामा हो .तुमने ये गुस्ताखी ..........
रसोइया - लेकिन महाराज..................
महाराज (गुस्से में चिल्लाते हुए तलवार निकल लेते हैं)- खामोश. नमकहराम . अभी तुम्हारा सर कलम...............
नटखट (रोकते हुए) - डैड डैड .......पूरी बात तो सुनिए . इसका प्लान राजा को मारने का था पर आपको नहीं .
महाराज- what nonsense ! राजा यानि हम. और कौन है राजा?
महारानी- हाँ नटखट . we have one एंड ओनली one राजा. कहीं तुम कोई मजाक तो नहीं कर रहे हो न ?
नटखट - ओके मोम . I know it is all very confusing .let me explain.

(राजकुमार बाहर जाता है और कान पकड़ कर बुल शीट को लाता है .)

नटखट -(बुल शीट से )- बुल शीट. कल रात तुमने महल के गलियारे में सर्वेन्ट्स क्वार्टर्स के बाहर क्या सुना था ?
बुल शीट - राजकुमार , मैंने आवाज सुनी थी की बहुत हो चुकी मनमानी ; अब राजा की खैर नहीं. काम तमाम ही समझो .
नटखट - बिलकुल ठीक सुना तुमने . क्योंकि बिलकुल यही dialogue बोला था इस रसोइये ने . लेकिन इस राजा के लिए (जेब से शतरंज का राजा निकलते हुए )...........
नटखट (महाराज से)- डैड इसे शतरंज खेलने का शौक है और शतरंज खेलते वक़्त ये इस तरह की dialogue बाजी करता रहता है .
रसोइया (गिडगिडाते हुए) - हाँ महाराज . ये सच है . मुझे माफ़ कर दीजिये .
महाराज- सजा तो जरूर मिलेगी , लेकिन इस गधे बुल शीट को . आज से इसका डी- मोशन किया जाता है . अब तुम शाही रसोई में सब्जी काटने का काम करोगे ..
महाराज (रसोइये से )- और खानसामा , तुम रोज रात को हमारे साथ शतरंज खेलोगे . फिलहाल हमारे लिए एक तंदूरी चिकन बना कर लाओ. मरे जा रहें हैं भूख से.

(बुल शीट और रसोइये का प्रस्थान .)

महारानी- ओ प्रिंस. यु आर genius .
महाराज- हाँ राजकुमार सो तो तुम हो. लेकिन फिर भी एक बात से हम खफा हैं.
नटखट- शूट डैड .
महाराज- तुम उस विदेशी गोरी मेम के साथ सारा दिन घूमते हो , ये अच्छी बात नहीं .हमारे बाद सारा राज पाट तुम्हे ही सम्भालना है .
नटखट - अरे डैड , इस फालतू murder मिस्ट्री के चक्कर में मेन बात तो आपको बताना ही भूल गया . आज आपका जनम दिन है . है न?
महाराज- शुक्र है , तुम्हे याद तो है.
नटखट - डैड मैं आपके जन्म दिन पर आपको एक खास तोहफा देना चाहता था .
महारानी- तू कहीं उस गौरी मेम से शादी तो नहीं .............
नटखट - ओह , नहीं मोम. वो मेरे साथ पढ़ती थी. अब वो अपने देश की सरकार में मंत्री है. मैंने ही उसे यहाँ बुलाया था . मोम, आप जानती हैं, हमारे खजाने की हालत कितनी ख़राब है ? महल के स्टाफ को सलरी देने के पैसे नहीं है?
महारानी (दुखी मन से)- हाँ मुझे आज ही पता चला .
नटखट - आज मैंने उस गौरी मेम से एक deal साइन की है .हमारे देश की उत्तरी पहाड़ियों को खोद कर वो लोग १० जहाज मिटटी और पत्थर ले जायेंगे . और उसके बदले में हमें देंगे ५०० करोड़ मुद्राएँ .
महाराज- हैं , मिटटी के बदले ५०० करोड़ मुद्राएँ . मुझे तो ये कोई चाल लगती है . कहीं उनकी फ़ौज तो यहाँ नहीं आएगी मिटटी खोदने के बहाने , वर्ना मिटटी कोई क्यों खोदेगा ?
नटखट- डैड. कभी सीधा भी सोचो न ! हमारी मिटटी में ताम्बा है. हमारे लिए ये किसी काम का नहीं , क्योंकि हमारे पास उसे निकलने की तकनीक नहीं . और खुदाई के लिए उनकी फ़ौज नहीं हमारे देश के मजदूर ही काम करेंगे जिसके लिए उन्हें अच्छी मजदूरी भी मिलेगी .५०० करोड़ मुद्राओं से हमारा पांच साल का खर्च पूरा हो जायेगा . तब तक कुछ और सोचेंगे .
महारानी- I am so proud of you sweet heart. तुम नहीं जानते की तुमने हमारी दो सबसे बड़ी समस्याओं को हल कर दिया.
महाराज- हाँ बेटा . बोलो क्या मांगते हो हमसे?
नटखट - डैड अगर आप इतना खुश हैं मुझसे, तो मुझे वो नेशनल अन्थेम की सीडी और प्लयेर दे दीजिये . वो रहमान का ओस्कैर विन्निंग सोंग है .
महारानी-कौन सा सोंग ?
(नेपथ्य से जय हो .....गाना बजता है . महाराज, महारानी और राजकुमार एक साथ डांस करते हैं. बाकि कलाकार भी मंच पर आ कर साथ में डांस करते हैं.)

पर्दा गिरता है.