नाटक लिखना और फिर उसका मंचन करना , एक बहुत ही कलात्मक उपलब्धि है . मुझे बहुत अफ़सोस होता है कि क्यों मैंने इस क्रियात्मक अभिव्यक्ति को जीवन के पचास वर्ष समाप्त होने के बाद जाना . इस अभिव्यक्ति का वास्तविक मूल्यांकन है, हॉल में बैठे नाटक के दर्शकों की तालियाँ . अपने लिखे कुछ नाटक यहाँ प्रेषित कर रहा हूँ . जिन नाटकों का मंचन किया जा चूका है उनकी कुछ तस्वीरें भी यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ.यदि कोई पाठक इन नाटकों का मंचन करना चाहे तो कृपा कर के मुझे सूचित कर के मेरी लिखित अनुमति प्राप्त कर लेवे .